
रायगढ़। प्रदेश में चर्चा का विषय बने बजरमुड़ा कांड की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि अब बरौद कोल माइंस विस्तार प्रोजेक्ट में भी मुआवजा घोटाले का बड़ा मामला सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, इस बार भी मुआवजा हेराफेरी के लिए नया पैटर्न अपनाया गया है, ठीक उसी तरह जैसा बजरमुड़ा में हुआ था।
एसईसीएल द्वारा कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिए शुरू किए गए बरौद खदान विस्तार प्रोजेक्ट को पहले ही पर्यावरण स्वीकृति (Environment Clearance) मिल चुकी है। इसके तहत ग्राम पोरडा, पोरडी, कुर्मीभौना, चिमटापानी सहित छह गांवों की करीब 1000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। अब परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के लिए किए जा रहे सर्वेक्षण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है।
सर्वे के दौरान एसईसीएल अधिकारियों ने पाया कि ग्रामीणों ने भूमि अधिग्रहण की जानकारी होने के बावजूद बड़े पैमाने पर नए निर्माण किए हैं। टीन शेड, झोंपड़ियां और कच्चे घरों को पक्का दिखाने का खेल चला। यही नहीं, कई जगह असिंचित भूमि को सिंचित दिखाने के लिए बोरवेल खुदवाने के सौदे तक हुए।
सूत्रों का कहना है कि राजस्व विभाग की टीम के सर्वे के दौरान इस गड़बड़ी में कुछ सरकारी कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध रही है। बताया जा रहा है कि एक अधिकारी ने लाभार्थियों से मिलीभगत कर गलत मूल्यांकन कराया, जिससे मुआवजा राशि कई गुना बढ़ गई।
एसईसीएल ने जब स्थिति गंभीर देखी तो एसडीएम घरघोड़ा को पत्र लिखकर अर्जित भूमि पर निर्माण रोकने की मांग की। इसके बाद एसडीएम ने निर्माण पर रोक के आदेश दिए, लेकिन तब तक बड़ी संख्या में फर्जी निर्माण हो चुके थे।
जानकारों के अनुसार, तमनार और घरघोड़ा क्षेत्र में हो रहा यह मुआवजा घोटाला “भारतमाला प्रोजेक्ट” में हुए घोटाले से भी कई गुना बड़ा माना जा रहा है। बावजूद इसके अब तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी पर कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे प्रशासन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।